Thursday, 29 December 2016

ગઝલ

सौ प्रथम तारी धारणा खूलशे
धीमे धीमे  ऐ  बारणा  खूलशे

ऐमनी  पासे  आवी  ऊभो हुं
मानपूर्वक आ मंत्रणा खूलशे

ऐक -बे  में स्मरणने भूलाव्या-
तो हवे ऐ बे त्रण गणा खूलशे

रात छे  पण  जरा  तमे  ठहरो
आज हमणां ज पोयणां खूलशे

ऐक लांबी नवलकथा जीवन
ने  रहस्यो य  ठिंगणा  खूलशे

        भरत भट्ट

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