सौ प्रथम तारी धारणा खूलशे
धीमे धीमे ऐ बारणा खूलशे
ऐमनी पासे आवी ऊभो हुं
मानपूर्वक आ मंत्रणा खूलशे
ऐक -बे में स्मरणने भूलाव्या-
तो हवे ऐ बे त्रण गणा खूलशे
रात छे पण जरा तमे ठहरो
आज हमणां ज पोयणां खूलशे
ऐक लांबी नवलकथा जीवन
ने रहस्यो य ठिंगणा खूलशे
भरत भट्ट
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