अब सीलसीला जुडा है तुम्हारे खयाल से,
उलजे हुवे है आज हम वस्ले सवाल से।
तुमने दीखाइ राह जो हमें हसरतो भरी,
हम तो भटक गये थे उमीदों की चाल से।
अय से तुम्हारी चाह में काटे हैं रात दिन,
उभरे नहीं हैं आजतक रंजो मलाल से।
चाहत तुम्हारी इस तरह सांसो मे घुल गइ,
अरमां सीसक रहे हैं गम के उबाल से ।
आकर नवाज दीजी ये तेरी दीद से हमें,
दिलको सुकुन सा मिले वस्ले जमाल से ।
इन गर्दिशों की चाल का ये मासूम असर हुवा,
तेरे करम की आस ने हमें बांधा है जाल से।
मासूम मोडासवी
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