यहाँ देखा वहाँ देखा..कहाँ कहाँ न हमने उसको खोजा..!
जैसे निंदमे चलते चलते..हमने सारा संसार देखा...!!
चाँद सितारे और सूरज सी आँखोसे पूरा ब्रह्मांड देखा...!
बेहोशीमें जो जो देखा चर्म-चक्षुओने अखिलको अधूरा देखा..!!
धरती के छोर पे खींची हे चारो ओर एक आभासी रेखा..!
क्षितिज के पड़ाव पे..धरती से आसमानका झूठा मिलन देखा..!!
एक पल अनपे ही अंदर..ठहेराव की घटना को देखा..!
जो था अधूरा सब जगह..बँध आँखों से उसे पूरा देखा..!!
उसीके रूपमें सब और सबों के रूपमें उसीको अनंत देखा..!
समजेगा कोई कैसे...जिसे मैने मेरे अनुभव से देखा..!!
सारी शक्लों में ढूँढते ढूँढते..कहीं कभी कुछ ना देखा..!
हुई बंद खोज सब और..बेशक्ल की सूरत में देखा..!!
BY-GORDHANBHAI VEGAD(PARAMPAGAL)
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