आज तो मैं उनकी आँखोसे बेपनाह पी गया
न जाने कैसे कैसे नशीले मैख़ानोंसे पी गया
चारो और छाया था मौतका अजीब आलम
न जाने फिर भी मैं कैसे और क्यूँ जी गया ?
उनके दीद के बाद मेरा ये आलम-ए-होश
जैसे लड़खड़ाहट को ही मुस्कुराके पी गया
और फिर ज़माने के सामने होश का दावा
एक पाक़ जूठमें मैं सचको सचमें जी गया
तवज्ज़ो नीयतकी आज बयाँ करता हूँ मैं
शेख़ मस्जिदमे रहा और आंखोसे पी गया
लाश जुस्तजू की हो चूका था जिस्म-ओ-जान
ज़ालिम जमाना देखता रहा और मैं जी गया
वो आँखे साकी मेरी और मैं "परम" पियक्क्ड़
हर तोबाके बाद "पागल" बनके बारबार पी गया
गोरधनभाई वेगड (परमपागल)
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