Tuesday 28 February 2017

અછાંદસ

ये आरजू है के
तेरी गोदमें सर रखके
चांदतारे देखुं,
और तुं हाथ फेरे जेसे
सुबह तपाने के बाद ये
रातको जो हवा ठंकसे सेहलाती वेसे...

ये आरजू है....
बस तुझे देखे बस देखते रहे
जेसे कोई चातक पेहली बरसात
की पेहली बुंद देखे......

ये आरजू हैं
तेरी झुलफसे सुरज को हराके
सुबह को शाम करुं
जेसे घटां छाती हैं.......

ये आरजू हैं
में भी हुं ये दुनिया भी हैं,
पर नहीं है तो बस तुं

पर अभी भी ये आरजू हैं....

पागल कोईन्तियाल्वि

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