Friday, 1 September 2017

ગઝલ

एक ग़ज़ल हिंदी में
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            ...  सुरेंद्र कड़िया

बोझ कितना ढो गए, कुछ भी बता सकते नहीं
हाथ  मेरे  फूल का साया उठा सकते नहीं

क्या खबर, खामोश कागज़ पर कहाँ से आ गया
एक  छोटे  से  परिंदे  को हटा सकते नहीं

एक  तेरी  ही  कसम खाने की नोबत आई है
लोग  मानेंगे नहीं, हम भी मना सकते नहीं

हम गले मिलते गए, वो सोचते  ही  रह  गए
क्या लगा सकते गले, क्या क्या लगा सकते नहीं

तुम मेरी परछाई को सूई भोंक कर क्या पाओगे ?
तुम किसी सूरत मेरी दुनिया हिला सकते नहीं

... सुरेंद्र कड़िया

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