Friday 12 January 2018

ગઝલ

फीतरत का भोला फन लीये फनकार हो गये,
सुरत बदल ने वाले जो कीरदार हो गये ।

हाथों में आइ जबसे हुकूमत की बागडोर,
रुत्बा जमाके अपना बड़े सरकार हो गये।

दर दर भटकना जीनके मुक्दर में था मगर,
वो अब हमारी कौम के सरदार  हो गये।

माँ बाप को भी अपने युं कमतर बना दीया,
बच्चे हमारे कितने समजदार हो गये।

अपना बनाके जीसने बढाये थे मरासिम,
मतलब निकल गया तो अगयार हो गये।

बदले हुवे जहां का नया तोर देखीये,
बे लोस मिलने जुलने से बे जार हो गये
मासूम हाथ आया दबाया खुशी खुशी,
मजहब की आड लेके ही जरदार हो गये।

                   मासूम मोडासवी

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