Thursday 23 August 2018

ગઝલ

सोये हुवे जज्बात जगाने की तमन्ना,
रुठे हैं गले उनको लगाने की तमन्ना,

किस बात पे नाराज बैठे है वो हमसे,
दिल में तो मचलती है मनाने की तमन्ना।

सहेते रहे फुरकत के सदा रंजो अलम को,
बाकी है अभी  उनकी सताने तमन्ना ।

जागे हुवे अरमान दबाना नहीं मुमकिन,
दिल में है महोबत को बसाने की तमन्ना।

चलती रही सीने में जो इक नाम की धडकन,
उलफत की उसी से है निभाने  की तमन्ना।

दिन रात वो इक याद सताती रही फीरभी,
बिगडे हुवे हालात बचाने की तमन्ना ।

मासूम निभाते रहे यक तरफा वफाऐं,
दिल मे रही अहेसास जताने की तमन्ना।

                        मासूम मोडासवी

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