Thursday 28 February 2019

ગઝલ

कटी  राह  कैसे , पता  ही  कहाँ था,
लगा था  कि कोई  चला ही कहाँ था ।

सभी  के  सभी  खुल  गए  कारवाँ में,
जरा  राज़   बाकी  बचा  ही  कहाँ था ।

अभी  तक   तेरे  साथ  ही चल रहा हूं ,
किसी  ओर से  दिल  लगा ही कहाँ था ।

नशीली    नजरने    मुझे    मार   डाला,
किसी   तीर से   मैं   मरा  ही  कहाँ  था ।

तुझे     इसलिए    तो   नयनमें   बसाया,
कहीं   आशियाना   बना  ही   कहाँ  था ।

दुआ से    मिली    रोशनी    काम   आई,
वहां  'पुष्प '  दीपक  जला  ही   कहाँ  था ।

                        ---पबु गढवी 'पुष्प '

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