कटी राह कैसे , पता ही कहाँ था,
लगा था कि कोई चला ही कहाँ था ।
सभी के सभी खुल गए कारवाँ में,
जरा राज़ बाकी बचा ही कहाँ था ।
अभी तक तेरे साथ ही चल रहा हूं ,
किसी ओर से दिल लगा ही कहाँ था ।
नशीली नजरने मुझे मार डाला,
किसी तीर से मैं मरा ही कहाँ था ।
तुझे इसलिए तो नयनमें बसाया,
कहीं आशियाना बना ही कहाँ था ।
दुआ से मिली रोशनी काम आई,
वहां 'पुष्प ' दीपक जला ही कहाँ था ।
---पबु गढवी 'पुष्प '
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