Friday 30 September 2016

છંદ

.    [ शकती संग्राम काव्य ]
      रचना - चमन गज्जर

         ( कवित )
बीन कुं बजाय नित वेद ने पुरान गाय,
वोही महमाय पाय शीश को नमावुं मैं,
नही मुज में है मती, जानतो न कांय अती,
एक ही तिहारी गती, मती मात पावुं मै,
सुजे न शबद लेश करी कथा केम केश,
बाळ छु हजी तो केम कवीता रचावुं मैं,
हंस की वाहीनी एवी सुर मुनी लोक सेवी,
दीजीये आशिष देवी मात गुन गावुं मैं. (१)

कुल की तुं देवी मात टाळ अवरोध घात,
सर पें पसार हाथ जाणजे हुं बाळ तुं,
वेग थी करव्वा वार आवजे तुं अण वार,
सुणके पोकार ततकार ले संभार तुं,
बाधक जो होय कांय सरवे चामुंड माय,
आवजे सहाय, सबे दुरगुण टाळ तुं,
बाळ छुं तमारो हाथ ज़ालजे तुं मारो,
एक आपनो सहारो मात आवी लेजे भाळ तुं. (२)

जगत सब वंदना करत है माथ नामी,
नारदजी जाको जश गावत दिन रात है,
दैवी पुराण भाखी समरण जा व्यास।करे,
शारद कर वीणा धारी जाको गुन गात है,
भगतां की तारण जे मारण असुरां दल,
जारण सब पाप कुं जे सिंह पे सोहात है,
चोटीला डुंगर की धार पे विराजी बैठी,
जगत की जननी सो चामुन्डा मात है. (३)

      ( दुहा )
अहर थयो अवनी परे, मोटो मैखासुर,
दळ हाक्यां देवो परे, करमे राखह कृर.

हाथ धारी हथियार कंई, तीर ढाल तलवार,
दैत उपड्या दैव पर, वेगे लईने वार.

       ( हरीगीत )
तलवार खडगां हाथ धारी वार निशिचर आवती,
गडेडाट पडघा पडत गगने धरा धृजी जावती,
कटकटही जंबुक दंत गिद्धां टोळ गगने छावती,
वैताळ देतो ताळ वहरां गीत जोगण गावती.

खळभळ्यो आखो खलक ने नभ मंड्ळ पण कंपी गयुं,
वायु डरी थ्यो थीर सागर नीर पण थीजी गयुं,
छुटी समाधी शिवनी छीर सागरे शेष ज डग्यो,
गजराज कंभुठाण छांडी तरत वन पंथे भग्यो.

         ( दोहा )
करे विनंती जोरी कर, सघळो सुर समाज,
राखह रणमां रोळवा, आवो अंबा आज.

         ( छप्पय )
तुंही रिधि सिधि धृती, तुंही किरती अरू विध्या,
तुंही धरणी तुं आभ, तुंही दिन रात रू संध्या,
तुंही आर्या कात्यायनी, कौशिकी ब्रह्मचारीणी,
तुंही भुती सन्नती, तुंही सब जगत धारीणी,
क्षमा पुष्टी अरू तुष्टी तुं, तुं जया विजया ज्वालिका,
दैत्य सेन रण नाशकुं, करन प्रगट हो कालीका.

तुंही जगत के जीव, दान जीवन देनारी,
विना रूप रूप घणां, सर्व स्थळ विचरनारी,
तुं उथापी अधरम्म, धर्म थापन करनारी,
देत दुष्ट कुं दंड, भक्त कुं रक्षनहारी,
परवत्त शिख्र नदी नाळ पे, वन उपवन तव वास है,
शरण छीये सरवेसरी, एक आप री आस है.

तुं वेदोना छंद, तुंज पुराण नी वाणी,
तुंज आतमा रूप, पंच भुतां परमाणी,
तुंज मीन धरी रूप, वेद पाताळ थी लावी,
वळी रूप वाराह, धरी धर दांत उठावी,
नरसंग रूप लई निसरी, थंभ फार ततकार है,
कर जोर विनती सुर करे, तुं करनहार किरतार है.

       ( दोहो )
तारण भक्त जारण अघ, मारण दैत विकराळ,
प्रगट थाओ परमेहरी, जोगण बन कर ज्वाळ.

मैखासुर ने मारवा, जागी जगदंबा,
दैतां दळने डामवा, आवी रण अंबा.

         ( हरीगीत )
भुजा अढारे शस्त्र ने असवार सिंहे ओपती,
मुख कमळ नी ए कांती कोटी चन्द्र ने शरमावती,
विशाल भाल कपाल तेजे सुर्य जांखो थाय छे,
सुर काज करवा आज अंबा जुद्ध लडवा जाय छे.

        ( छंद - पद्धरी )
शंभर असुर मैखाय सुर, वळी चंड मुंड दळ अती करूर,
ने वज्र दंत जंभक निठुर, अने मुष्टी छद्म मायावी कृर.

ढम ढमक ढोल गैबी निसाण, भय करत गात जोगिन्ह गाण,
त्यां भुत प्रेत नाचंत पिशाच, रण खाळ नाळ सिंहयाळ राच.

गरजंत घोर करी अट्ट हास, भ्रख लेत रम्त जोगिन्ह रास,
वैताळ ताळ दैवत कपाळ, अहराण काण मांडंत काळ.

चिक्षुर कृर बाष्कल बिडाल, लई खडग परशु हथ भिन्डीपाल,
सब भडक दैत चामुन्ड भाळ, शीश गगन आंब पैरां पताळ.

चामुन्ड उत्त किन्हो हुंकार, करी शस्त्र वरषा दैतां संघार,
अति क्रोधवंत गद्दा उठाय, धरी विविध शस्त्र मैख असुर धाय.

करी क्रोध मात मारंत लात, पर्यो माथ धुनी बौ धुरी खात,
मारो पछारो बौ होत शोर, गाजंत नभ्भ सुर शब्द घोर.

तब रक्त बीज गर्जन करंत, ता शीश काट खप्पर भरंत,
असुराण देह भ्रख रग्त पान, करी मात कर्त भयकार गान.

           ( हरीगीत )
करी पान रगतां गान कर भयकार नाची जोगणी,
विकराळ धार्युं रूप निशिचर काळ रणमां जो बणी,
दानव परे करी कोप रण तरशुळ नी भोंकी अणी,
भव तरण तारण दैत मारण पाप जारण जोगणी.

काली करीने कोप रण भयकार थई भडती हती,
विंध्या पहाडे घोर त्राडे जुद्ध ए लडती हती,
पापी पछाडी रक्त लई निज भरत खप्पर भोगणी,
भव तरण तारण दैत मारण पाप जारण जोगणी.

भुजा अढारी कोप कारी सिंह स्वारी कर लडी,
फुंफाड मारी शस्त्र धारी जोगणी जुधे चडी,
विकराळ लईने वेश रण माता बनी गई मारणी,
भव तरण तारण दैत मारण पाप जारण जोगणी.

तरशुळ ने तशवार तोमर खडग बौ रण खखडीयां,
भेंकार कंई भुतावळो रण प्रेत पण राची रह्यां,
करतो कडाका आभ धणणण करत धरणी धणधणी,
भव तरण तारण दैत मारण पाप जारण जोगणी.

         ( छप्पय )
चडी रणे चामुन्ड, मुंड दैतारां उड्डै,
करी क्रोध हुंकार, धार खडगांसु गुड्डै,
दैत सेन हुकळे, पडे खणवार न टक्कै,
थई गई भागम भाग, आग सुं को न अटक्कै,
विंध्याचळ थी उतरी, क्रोध रूप करतांत,
कर जोड 'चमन' कवी उचरे, जय जय चामुंड मात.

वंध्यो महिष असुर, कृर राखह दल भागै,
रूप धार्यो विकराळ, काळ दैताण कुं लागै,
करण दैव को काज, आज रण अंबा आवी,
मार्या चंड ने मुंड, नाम जग चामुन्ड का'वी,
मारण दैत तारण भगत, जारण अघ जग आग,
कर जोड चमन कवी उचरे, भयसु कृर गये भाग.

        ( दोहा )
गिद्ध जरख शिंयाळवां, भ्रखे मांस दैताण,
रिपुयां ने रण रोळीयां, कर धारी करपाण.

करी कोप रण कारमो, मार्यो महिष असुर,
अभय जगतने अरपियो, दान भय थो दुर.

    [ चमन गज्जर कृत ]

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