Tuesday, 29 November 2016

ગઝલ

वफा  कर उसकी जफा भुलकर,
खता बख्श दो तुम खता भुलकर

आया हे तो दिल से मिल तु गले,
सब  नाज  नखरे  अदा  भुलकर

कली मुस्कुराइ हे गुल्शन मेआज
कैदे  खीजां  की  सजा  भुलकर

शायद उनसेमिलनेका होइत्तफाक
चले आये हम सब खता भुलकर

हमें  आज  फीर  मुस्कुराना पडा
तेरी  बे  रुखी  बे  वफा  भुलकर

शक उनको  हमपे गले तक रहा
मेरी मुखलीसाना वफा भुलकर

सितमबेसबब उनके हम सेह गये
अहेसां का मासूम सीला भुलकर ।

                मासूम मोडासवी

No comments:

Post a Comment