Saturday 31 December 2016

ગઝલ

मोरलो खभ्भा उपर ने मन ऊडे
खीस्सुं फाटी जाय त्यांथी धन ऊडे
  
पांख फूटी जाय त्यारे चोतरफ
सिंह पाडे त्राड त्यांतो वन ऊडे
     
बाजुंथी नीकल्यां तमे अडवा पगे
मेज पर झांझर तरत छनछन ऊडे
    
तारुं जोबन वृक्षमां बेसी गयुं
बेसवा त्यां मारूं पण यौवन ऊडे
     
हुं लखुं ज्यारे गझल ऐकीटशे
मुठ्ठीमां आत्मा रहे ने तन ऊडे
         --- धर्मेश उनागर

No comments:

Post a Comment