Tuesday 31 January 2017

ગઝલ

पूरी नहीं हुई व जरा सी नहीं हुई,
हमपे असर दवा की दवा सी नही हुई !!

वो जेब में दुवाओ को भर के चला गया,
अच्छा हुआ की उसकी तलाशी नहीं हुई !!

जलती रही सदा वो कभी भी ना पीगली,
ये जिंदगी भी मेरी शमा सी नहीं हुई.

उसके तो कोई हाथ नहीं, क्यां नसीब हे !!
उससे कभी भी कोई दुवा सी नहीं हुई !!

'प्रत्यक्ष' हम तो बेठे युं मुरत बना रहे,
अफसोस हमसे वो भी खुदा सी नहीं हुई.

रवि दवे 'प्रत्यक्ष'

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