Tuesday, 28 February 2017

ગઝલ

लो महोब्बत में अब वो मकाम आ गया,
हाथ में फिर से अपने ये जाम आ गया;

बात तो थी जमाने की रुसवाई की,
होठ पर क्यूँ तुम्हारा ही नाम आ गया?

मुद्दतें हम ने तन्हा गुज़ारी ही थी,
वो तजुर्बा पुराना ही काम आ गया!

दर्द से दो घडी दूर हम क्या हुए!
सामने से वो ले के सलाम आ गया;

दो दिलों को बिछड़ते हुए देख कर,
याद अपना वो किस्सा तमाम आ गया;

बेवजह तो नही आँख की ये नमीं;
उन के हाथों में मेरा कलाम आ गया!

: हिमल पंड्या

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