अब क्या जवाब दें हम उठते सवाल का,
ये दौर चल रहा है अभी तक जवाल का।
हिमत से काम हमने लीया है बहोत मगर,
बदला नहीं है मोसम गर्दिश की चाल का।
आंखों मे बस गइ थी जमाने की रंगों बु,
कितना नशा चढ़ा था हमें नुरो जमाल का।
हमको रहा सहारा तेरी रीफाकत का आजभी,
अब तक दबा पड़ा है आलम मलाल का।
सोचों मे कितने आगे देखो निकल गये हम,
मयार कितना बदला है अपने खयाल का।
इतना बतादो काहे डरते हो बे सबब क्युं,
सबपे असर था छाया तुम्हारे जलाल का।
आकर मिले हो लेकिन मायुस क्युं हो मासूम,
रुत्बा कहां गया वो सब जाहो जलाल का।
मासूम मोडासवी
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