चूप रहेके भी वो अफ़साना -ए -इशक़ बयाँ करते है
तभी तो हम ख़lमोशीको ज़ुबाँ महोब्बत की कहते है
कदम कदम पे कज़ा खड़ी है हर मोड़ पर यहाँ वहाँ
ये दुनियावाले इसे न जाने क्यूँ जिंदगी समझते है
गरज परस्त है यहाँ सब अपने सब कहने के लीये
फिरभी ऐसे रिश्तों को हम न जाने क्यूँ रिश्ते कहते है
वादा निभानेकी बात बात पे ले लेते है झूठी कसमे
ऐसी रवायतों को न जाने क्यूँ लोग मुहोब्बत कहते है
रास्ते का कुछ भी पता नहीं और जीवनभर चलते है
कदम कहीं भी जाते नहीं और इसे मंज़िल क्यूँ कहते है
जीते जी बन गया मेरी ही मौत का सामान वो "परम"
और "पागल" है दुनिया क्यों इसे जानेजिगर कहेते है
ગોરધનભાઈ વેગડ(પરમપાગલ)
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