Thursday, 1 June 2017

ગઝલ

हर  कोइ  वास्ता  जताता है,
कोन रीश्ता यहां निभाता  है।

जबसे  उनको करीब पाया है,
दिल खुशी से ही जुमजाता है।

अब उमंगे भीआस्मां छुने लगी,
मन परिंदा खला को सजाता है।

फासले सब घट रहे हैं कुरबत से,
कितना अपना हसींन ये नाता है।

हम वफा की उमिदें जोलेके चले,
वो अभी तक  नजर जुकाता है ।

जुल्मतें  फैली  हुइ  है  घर घर में,
दिल  ये  मनके  दीये  जलाता है ।

ये मुकद्दर का सब खेल है मासूम,
जो  खड़ा दुर दुर से मुस्कुराता है।

          मासूम मोडासवी

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