Sunday, 30 July 2017

ગઝલ

ग़ज़ल

बेघरी का अपनी ये इज़हार कम कर दीजिए
शे’र में ज़िक्र-ए-दर-ओ-दीवार कम कर दीजिए

अपनी तन्हाई में इतना भी ख़लल अच्छा नहीं
आप अपने आपसे गुफ़्तार कम कर दीजिए

दुश्मनों की ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगी तादाद कम
यारों की फ़िहरिस्त में कुछ यार कम कर दीजिए

जब तवज्जह ही नहीं मौजूदगी किस काम की
इस कहानी में मिरा किरदार कम कर दीजिए

सोचिए अब इतने चारागर कहाँ से आएँगे
मुस्कुराकर अपने कुछ बीमार कम कर दीजिए

आपकी बातों में आकर जान से जा तो चुके
अब तो इनमें ज़ह्र की मिक़दार कम कर दीजिए

आप  जो ये कहते हैं मरने की भी फ़ुर्सत नहीं
एैसा कीजे अपने कुछ इतवार कम कर दीजिए

🖌🔹शायर🔸राजेश रेड्डी🔹🔸

No comments:

Post a Comment