Wednesday 30 August 2017

गझल

उसे बचाये कोई कैसे टूट जाने से..?..2
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से..!

वो शख्स एक ही लम्हे में टूट फुट गया...2
जिसे तराश रहा था मैं एक ज़माने से....!

रुकी रुकी सी नज़र आ रही है नब्ज़े हयात...2
ये कौन उठ के गया है मेरे सरहाने से.....!

न जाने कितने चरागों को मिल गई *शोहरत*....2
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से.......!

उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को.....2
गुलाब खिलते थे कल जिसके मुस्कुराने से.....!

उसे बचाये कोई कैसे टूट जाने से......?
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से.......!!

*(ज़नाब इक़बाल अशर)*
संकलन..कैलाश सिंघल "केसू"
7089046287

No comments:

Post a Comment