Friday, 29 September 2017

ગઝલ

खरी बात का जो निभाना हुवा,
उन्हें  रुठने  का  बहाना  हुवा ।

बनाये  गये  हम फीर अजनबी,
हमें  आज  ऐसा  सताना  हुवा ।

वफा भी खता उनको लगने लगे,
हमारा  बुरा  दिल  लगाना  हुवा ।

उन्हें चाह कर  हम  नहीं पा सके,
कदम दर कदम डगमगाना हुवा ।

बसाने की  खुदको  तमन्ना  रही ,
अधुरा  इस कदर  दोस्ताना रहा ।

बदलते खयालों ने बदला चलन
नया आज अपना फसाना  हुवा ।

जफा उसने मासूम नहीं की कभी
उसे  जानते  इक  जमाना  हुवा ।

                       मासूम मोडासवी

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