Saturday, 30 September 2017

ગઝલ

ये शख्स दिल खोलकर कभी रोया नहीं,
दोस्त!फिर युँ हुआ कि रातभर सोया नहीं।

क्युँ भला पूछते हो बार-बार निखार का राज़?
ये चेहरा तुमने कभी शराब से धोया नहीं??

आहिस्ता-आहिस्ता दुर गये,दुनिया खो दी,
क्या हुआ?एक मैं हुँ,जो अभी तक खोया नहीं!

बहार आयी तो उज़डे हुए चमन को भूल गए?
कौन सा बोझ था जो तुम्हारे लिए ढोया नहीं?

अगम जरूर कुछ अच्छा होगा तुम्हारे बगैर,
एक जिन्दा ख्वाब है जो आँसूओ से भिगोया नहीं।

-शैलेश चौधरी 'अगम'

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