Sunday 19 November 2017

ગઝલ

चुपके चुपके रात दिन आसू बहाना याद है
हमको अबतक वो आशिकी का जमाना याद है

बाॅ हजारा इस्तराब, ओ सद हजारा इस्तिराक
तुजसे वो पहले पहले दिल का लगाना याद है

तुजसे मिलते ही वो बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दातो में वो उंगली दबाना याद है

खिंच लेना वो मेरे पर्दे का कोना दफतन
और दुपट्टे से तेरा वो मुह छिपाना याद है

जानकर सोता तुजे वो करूदे पा बोसा मेरा
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है

तुजको जब तन्हा कभी पाना तो आज राहे लिहाज
हाल-ए- दिल बातो ही बातो में जताना याद है

वो गया गर बस्ल की शब भी कही जिक्रे फिराक
वो तेरा रोरोके मुझको भी रूलाना याद है

दोपहर की धूप में मुजे बुलाने के लिए
वो तेरा नंगे पाँव आना याद है

देखना मुझको जो बरगशता तो सौसौ नाज से
जब मना लेना फिर रूठ जाना याद है

चोरी चोरी हमसे तुम आकर मिले थे जिस जगह
मुद्दते गुजरी पर अब तक वो ठिकाना याद है

  ........... हसरत मोहानी .........

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