आखर अवसर ओपता,
जस भरता जजबात ।
पात सत परख पोखणा,
वाचत मनरी वात।(१)
जात इज्जतां जांणवा ,
वाणी वाच विशेष ।
चारण सारण चाहना,
वरणो ईसर वेश ।(२)
द्विवेष कबु न दाखणो,
आंणद भण आभास ।
अंतर राखण ऊजळो,
वाणी अमिरस वास।(३)
दास प्रथा नी दुझतो,
अंते रो अवसाण।
पालण प्रेम ज प्रितड़ी ,
सारस रास सुजाण।(४)
माया काया मानवी ,
भाया रस भरमाण ।
आयो अवसर ओळखो,
मानवता महकाण ।(५)
आखिर विछाणौ अवनी,
कोटि रज कर कमाण।
महल माळिया मायवी,
जाळी झंझट जाण ।(६)
खाली हाथां खांचसी,
पज़ंर जळसी पाट ।
धर पर रहवसी धरया,
थपिया कोटिक थाट ।(७)
अंतकाल आळूझसी,
पवन विळुभ्यो प्राण।
दियो दान दरसावसी,
भाव ईस भळकाण।(८)
अंतर करले ऊजळौ,
जाझो प्रेम जचाण ।
माया भळक न मानवी ,
मानवता मन माण।(९)
आंबा अवसर ओळखौ,
मानव तन महकाण।
सखा प्रीत जग सारणा,
प्रभु पंथ पहचाण।(१०)
आम्बदान देवल आलमसर ९१६६९१०६७७
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