Friday, 16 March 2018

છંદ

आखर अवसर ओपता,
जस भरता जजबात ।
पात सत परख पोखणा,
वाचत मनरी वात।(१)

जात इज्जतां जांणवा ,
वाणी वाच विशेष ।
चारण सारण चाहना,
वरणो ईसर वेश ।(२)

द्विवेष कबु न दाखणो,
आंणद भण आभास ।
अंतर राखण ऊजळो,
वाणी अमिरस वास।(३)

दास प्रथा नी दुझतो,
अंते रो अवसाण।
पालण प्रेम ज प्रितड़ी ,
सारस रास सुजाण।(४)

माया काया मानवी ,
भाया रस भरमाण ।
आयो अवसर ओळखो,
मानवता महकाण ।(५)

आखिर विछाणौ अवनी,
कोटि रज कर कमाण।
महल माळिया मायवी,
जाळी झंझट जाण ।(६)

खाली हाथां खांचसी,
पज़ंर जळसी पाट ।
धर पर रहवसी धरया,
थपिया कोटिक थाट ।(७)

अंतकाल आळूझसी,
पवन विळुभ्यो प्राण।
दियो दान दरसावसी,
भाव ईस भळकाण।(८)

अंतर करले ऊजळौ,
जाझो प्रेम जचाण ।
माया भळक न मानवी ,
मानवता मन माण।(९)

आंबा अवसर ओळखौ,
मानव तन महकाण।
सखा प्रीत जग सारणा,
प्रभु पंथ पहचाण।(१०)

आम्बदान देवल आलमसर ९१६६९१०६७७

No comments:

Post a Comment