Monday 29 October 2018

ગઝલ

भूल  !

भूल   भी   थी   कैसी   फूल  सी  कोमल,
सो  न    सकी रातभर , तड़पी  प्राण  सी।

पलकों   की   छाया  में ,सोई   है  कहानी ,
दर्द   की   उलझन ,हो  शके आसान  सी।

जल   नहीं   जाता   तो   क्या  करता  मैं  ?
आग  भी  लग  रही  थी ,तेरी  जबान सी।

आँख   अंजानी   में,  पहचाना  था  पानी,
लग  रही   थी  वह , अर्जुन  के  बाण  सी।

मेरा  कुछ  नहीं  लेके, सब  कुछ ले लिया,
आज  लहरें  उछलें ,समंदर के तूफान सी।

आँसू  न  बहाओ , मेरी  कब्र पर  दीवानो,
हरी घास  फूटी  है,आज  मेरे अरमान की।

हार  नहीं  मानी ,जिंदगी  से  लड़ता  रहा,
मेरी  जीवन यात्रा  ,कर्म के अभियान सी।
                          ***
-कृष्णकांत भाटिया 'कान्त '

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