जबसे नजर को आपका दिदार हुवा है,
दिल ये हमारा कितना तलबगार हुवा है।
ख्वाबों ने सजा रख्खे है मखमुर फसाने,
आखों के सामने खीला गुलजार हुवा है।
कुछ उनका करम पानेका इमकान बढा है,
दिल जीनकी इनायत से सरशार हुवा है ।
चाहत के भरोसे पे चले आये हैं लेकिन,
चाहा नहीं था ऐसा ये आजार हुवा है।
मासूम नये दौर की है ये जल्वा नुमाई,
माहोल नया आज का हमवार हुवा है।
मासूम मोडासवी
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