Thursday 28 March 2019

ગઝલ

हजारों ख्वाब लेकर ही जनम ये हमने पाया है,
बडी जुरअत से देखो हर कदम हमना बढाया है।

जीन्हे अपना समजके जिंदगी अपनी लुटा बैठे,
उसीके प्यार की हसरत में अश्को को छुपाया है।

नजर मेरी  हमेशा से  तलाए यार  में भटकी,
उसीकी चाह की खातीर जमाने को भुलाया है।

तेरे वाअदे पे हमको था भरोसा इस कदर लेकिन,
भरोसा  तोडकर तुने  सितम ये कैसा  ढाया है।

बचे दो चार कदमों का कटा ना फासला उनसे,
मगर खारों भरे रस्ते पे हमने खुदको चलाया है।

नहीं  माना  सरा  टाला हमारी बात को उसने,
बिछड के जीनकी उल्फत में सदाही गम उठाया हे।

चलो अच्छा हुवा मासूम खता से बच गये आखीर,
गुनहगारों की बस्ती से  कदम हमने बचाया है।

                               मासूम मोडासवी

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