जीवन रस
रो'ने भ'ई हळी - मळी
सुख कयां जवानुं छे ढळी !
जीवन तो छे नाझुक फूल नी कळी
तो जाव ने ऐक बीजा मां भळी
जाय आफतो बघी ज टळी
जो बदीओ ऐक वार जाय बळी
शुं छे स्वार्थ आ वळी ?
नाखो ने ऐने पण दळी
बघी ज इच्छाओ मारी फळी
दुनिया केवी लागे छे गळी !
( आ कृति स्पघाँ माटे छे )
सैयद अस्पाक ऐहमद सिकंदर अली
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