Thursday, 29 December 2016

ગજલ

जीवन रस

रो'ने     भ'ई     हळी - मळी
सुख  कयां  जवानुं  छे  ढळी !

जीवन तो छे नाझुक फूल नी कळी
तो  जाव  ने  ऐक  बीजा  मां भळी

जाय  आफतो  बघी  ज  टळी
जो बदीओ ऐक वार जाय बळी

शुं   छे   स्वार्थ  आ  वळी ?
नाखो  ने  ऐने  पण  दळी

बघी  ज  इच्छाओ  मारी फळी
दुनिया  केवी  लागे   छे  गळी !

( आ कृति स्पघाँ माटे  छे )
सैयद अस्पाक ऐहमद सिकंदर अली

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