उत्सवो जेवुं जरा धारो हवे
कोई पीडाने तो शणगारो हवे
उंबराथी खीण लग आवी गया
क्यां सुधी लई जाशे मूंझारो हवे
कोण उत्तर आपशे ऐ तो कहो
नाम कोनुं केम पुकारो हवे
हुं लखु छुं तोय दाझी जाउं छुं
शब्द पण लागे छे अंगारो हवे
घेरथी नीकल्या अने प्होंच्या नहीं
रात रस्तामां ज गुजारो हवे
भरत भट्ट
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