Friday, 6 January 2017

ગઝલ

गझ़ल

पाणी बहार आवी ने पगलां भर्या करो
रेतीमां  कोई  नाम  हवे   चितर्या   करो

आंखोनी  आरपार  जवाशे  नहीं  कदी
आकाश सामे  जोई  अने  विस्तर्या  करो

तमने तमे मली न शको ऐवुं थाय तो
तमने तमे ज खुद हवे  आंतर्या  करो

भरपूर थई  जवाशे तो आनंद  आवशे
खालीपो रोज रोज छलोछल कर्या करो

बारे य वहाण आम डूबेला ज होय छे
जो खुदमां होय  हाम हलेसे तर्या करो

              भरत भट्ट

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