Tuesday, 8 August 2017

ગઝલ

सुनके  तुम्हारे  नाम  के चर्चे जहान मे,
अब क्या बतायें हाल हम अपने बयान में ।

बढती रही है युं तो महोबत की आरजु,
आके बसा है चाहका अरमान ध्यान में ।

जीने लगे हैं आजकल यादों के आसरे,
मिलता है कम करार भी बेचैन जान में ।

शोखी मचल रही है कुछ उनकी निगाह की,
रख्खा है तीर उसने जो अपनी कमान में ।

मासूम निगाहे शोख से बचते रहे मगर,
काफीर का फत्वा लग गया आकर इमान में ।

                   मासूम मोडासवी

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