Sunday, 24 June 2018

ગઝલ

खेत से बिछड़ने की सजा पा रहा हूँ
राशन की लाइन में नजर आ रहा हूँ

ख्वाईशें बेच दी चंद टुकड़ो के लिये
मौत आने से पहले मरा जा रहा हूँ

जिंदगी को यूँ ही न गवारा कर देना
मैं समझा नही तुम्हे समझा रहा हूँ

साँसे भी जिस्म को कबका छोड़ गई
अपने न होने का मैं पता बता रहा हूँ

सुबहो शाम दर्द को जीता रहता हूँ मैं
न पूछो कैसे मैं रूह को चला रहा हूँ

ख्वाईशें रोज नया झूठ बोल देती है
अब बच्चो को खाली पेट सुला रहा हूँ

लगता है खुदा भी मुफ़लिस हो गया
दुवा में रोज मौत को भी मना रहा हूँ

जीते जी कभी माँ का सौदा न करना
सुन "मनु" इंसा होने पर पछता रहा हूँ

*मनुराज*

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