Sunday, 10 March 2019

ગઝલ

लगे दाग दिलपे छुपा न सके,
उनहे हाल अपना बता न सके।

शराफत ने हमको ऐक रख्खा,
जगी चाह दिलकी दबा न सके।

कभीतो उन्हे होश आयेगा माना
मगर इस जखमसे बचा न सके।

रहे हम सदा युंही किस्मतके मारे,
मुकद्दर को अपने बना न सके।

बडा ये सितम है जो तुने दिया है,
अकेले  कदम  हम उठा न सके।

रहा है ये जो नाम अपनी जबां पे,
बहोत चाहकर भी भुला न सके।

सहे गये आपकी तल्खीयां मासूम,
बढी बे करारी हम मीटा न सके ।

                      मासूम मोडासवी

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