Monday, 29 April 2019

ગઝલ

फ़ासलों  से  ड़र  रहे  थे तो फ़ासले मिले |
हरतरफ सफ़रमें गम के ही काफ़ले मिले |

ठोकरें  हीं  जिंदगी  का  नसीब  हो गई,
ना  कभी दुआ मिली थी ना होंसले मिले |

नींद आई ना मुजे जागा हूं में उम्रभर,
जागने  के  मेरे  हिस्से  में सिलसिले मिले |

आज ख़्वाब में वो आये तो रोने ही लगे,
फूटकर  बहोत  रोये  थे  फ़िर  गले मिले |

आग कितनी होगी नफरत की उन के दिल में भी,
ख़्वाब  भी यहाँ तो बेचारे सब जले मिले |

रोशनी है सिर्फ़ माँ बाप के ही कदमों में,
बाकी सब उजाले तो मुजको धुंधले मिले |

ये रुकी सी जिंदगी दोस्तोसेे चली 'कमल',
साथ  ले  के  चले  है कुछ सगे भले मिले |

कमल पालनपुरी

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