Thursday, 8 September 2016

ગઝલ



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याद तारी आवता तो, दर्द पण गभराय छे
यादना आ फूल सूखा, क्यां हवे करमाय छे
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प्रेम सागरनी लहेरे, लागनी नी नाव छे,
मन दिवाडांडीए मारुं,आ हदय भरमाय छे.
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आ हदय पण जो करावे, तायफा  केवा हवे,
ज्यां हवे  रहेता हदयमा,  प्रेम पण शरमाय छे.
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शांत हदये हुं सुनामी, साचवीने बेठो छुं
ज्या मळे एकांत तो आ, लागनी ठलवाय छे
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हुं लखुं छुं लागनी आ, आपवीतीनी अही
भाव "सर्जक"आ गजलना, क्या तने समजाय छे
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-गौतम परमार"सर्जक"

--(मोरबी जिल्ला साहित्य वर्तुल)

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