Friday, 2 December 2016

ગઝલ

फाइलुन फाइलुन फाइलुन.

चेहरा ऐ मिरा आइना हो गया,
हाल दिल का  बयां हो गया।

क्या जुबां से कहूँ दोस्तों,
रूह तक बेजुबां हो गया।

बेवफाई ज़हर बन गई,
जिंदा रहना सजा हो गया।

खून पानी हुआ आदमी,
और साया जुदा हो गया।

देर तक आँधियों से लड़ा,
वो दिया भी फ़ना हो गया।

गुनगुनाते रहे दर्द-दिल,
सब सुना अनसुना हो गया।

पंख आंधी उडा ले गई ,
दूर अब आसमां हो गया

आज ऊँगली मेरी थाम लो,
उम्र का कद बड़ा हो गया

क्या करूँ जिक्र करना पडा,
प्रश्न तनकर खड़ा हो गया

भूल जाऊं ये मुमकिन नहीं,
प्यार क्यों बेवफा हो गया

रूबरू हैं मगर अजनबी,
कोई अपना जुदा हो गया।

मुफलिसी में मुकम्मल हुआ,
वक़्त यूँ मेहरबां हो गया।

नींद मेरी कहीं खो गई,
बेबजह रतजगा हो गया।

आप आये नहीं लौटकर,
कोई फिर से सगा हो गया

ज़िन्दगी की अजब दास्ताँ,
लो पुराना नया हो गया।

फूल खुशबू नहीं काम के,
बेवफा गुलिस्तां हो गया।

जाने वाले तुझे अलविदा,
कैसे रोकूँ मेरा हो गया।
ईशान विराणी

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