Sunday, 9 April 2017

અછાંદસ

हम ईन्सान कीतने अजीब हैं
कभी सोचता हुं हम नहीं हैं
यहा के ईस जहान कें

जेसे गांवका कोई ईन्सान
शहेर की चकाचोंद को देखकर
दोडा आयो हो शहेर में और फीर?
फीर क्यां भागता बहुत भागता हैं
और फीर एक दिन थक जाता हैं,
मोह टुट जाता हैं ईस शहेर से
और वो लोट जाता हैं अपने देश..

जीसे हम मोत केहते हैं
मुझे वो वापसी लगती हैं
ग्रह वापसी..........

પાગલ કોઈન્તિયાલ્વિ

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